मुंबई - आजकल लॉक डाउन की वजह से फ़िल्में सिनेमाग्रहों की बजाय ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज़ हो रही है और उनका रिस्पांस भी अच्छा मिल रहा है ऐसे में अक्टूबर की २ तारीख को रिलीज़ हुई ईशान खट्टर (Ishaan Khatter) और अनन्या पांडे (Ananya Panday) स्टारर फिल्म 'खाली पीली' (Khali Peeli) काफी धूम मचा रही है , ओटीटी प्लेटफार्म पर कुछ देर पहले ही रिलीज हुई फिल्म खाली पीली ने दर्शकों का ध्यान अपनी और खींच रखा है . आज 2 अक्टूबर है और छुट्टी का दिन है. ऐसे में आप भी अगर ये प्लान कर रहे हैं कि फिल्म देखकर इस दिन को इंजॉय किया जाए तो आपको इसे देखने से पहले ये रिव्यू जरूर पढ़ लेना चाहिए. ईशान अनन्या की फ्रेश जोड़ी, मजेदार मुंबई भाषा और पैसों के बैग के सस्पेंस के साथ बनी ये फिल्म पूरी तरह एक बॉलीवुड मसाला फिल्म है.
'खाली पीली' की कहानी शुरू होती है मुंबई में टैक्सी स्ट्राइक की रात को टैक्सी निकालने वाले एक ड्राइवर यानी ईशान खट्टर से, जो इस टैक्सी-हड़ताल का फायदा उठाकर पैसेंजरों से एक्स्ट्रा पैसे ले रहा है. इसी लालच में वो पूजा यानी अनन्या पांडे को अपनी गाड़ी में बैठा लेता है और यहीं से शुरू होती है भागम-भाग की कहानी. ब्लैकी यानी टैक्सी ड्राइवर ईशान खट्टर खुद भी टैक्सी यूनियन के एक ड्राइवर का हाफ मर्डर कर के भागा है. कहानी में पूजा और ब्लैकी का कनेक्शन भी है, जिसे जानने के लिए ये आपको फिल्म देखनी होगी.
'खाली पीली' एक फुल-ऑन मसाला फिल्म है जो धांसू एक्शन से लेकर लटके-झटके वाले गाने तक, बॉलीवुड मसाला फिल्म का हर फ्लेवर लिए हुए है. फिल्म के कई सीन आपके चेहरे पर स्माइल बिखेर देंगे. कहानी एक रात की है और क्लाइमैक्स में रात से दिन भी होता है, तो ज्यादा खिंचने जैसा कुछ है नहीं. फिल्म का सबसे प्लस पॉइंट है, ईशान और अनन्या की फ्रेश केमिस्ट्री. ये जोड़ी पर्दे पर नई है और काफी अच्छी भी लग रही है. डायलॉग में पूरा मुंबईया पुट है और अगर आपको मुंबई की ये टपोरी भाषा पसंद है तो आपको इस फिल्म को देखने में काफी मजा आएगा. हालांकि बहुत ज्यादा लॉजिक लगाने बैठेंगे तो मसाला फिल्म का लुत्फ नहीं उठा पाएंगे.
हिंदी सिनेमा बड़ी स्क्रीन के लिए बना है और निर्देशक मकबूल खान की भी ये फिल्म बड़े पर्दे पर देखने के लिए बनी है. हालांकि कोरोना के इस दौर में इस फिल्म को ओटीटी पर रिलीज किया गया है, लेकिन ऐसी मसाला फिल्में अपने गानों, डायलॉग्स और एक्शन सीन पर सिंगल स्क्रीन्स में दर्शकों को उछलने पर मजबूर करने के लिए बनाई जाती हैं. ईशान ने अपने अंदाज में कोशिश तो वहीं की थी और अनन्या भी अपनी कुछ फिल्मों के बाद इस फिल्म में काफी कॉफिडेंट नजर आ रही हैं.
फिल्म की खामियों की बात करें तो स्टोरी में कुछ भी ऐसा नया या अनोखा नहीं है जो आपने इससे पहले किसी फिल्म में न देखा हो. साथ ही सेकंड हाफ में चीजें पर्दे पर होने से पहले आपके दिमाग में होने लगती हैं. जैसे ट्रैफिक जाम में फंसे ब्लैकी और पूजा मेला देखने उतर जाते हैं और पुलिस से बचने की कोशिश करते हैं, पर अगले ही पल स्टेज पर नाचने लगते हैं. फिल्म का फर्स्ट हाफ मजेदार है. अगर आप बॉलीवुड मसाला फिल्मों के फैन हैं, 'ढिशुम-ढिशुम' देखने में मजा आता है तो ये फिल्म आपके लिए ही बनी है. मैं इस फिल्म को 2.5 स्टार देने वाली थी, लेकिन हाफ स्टार की बढ़ोतरी ईशान की मजेदार मुंबई के लिए तो बनता है.
पर्दे पर | : | 2 अक्टूबर |
डायरेक्टर | : | मकबूल खान |
संगीत | : | विशाल-शेखर |
कलाकार | : | ईशान खट्टर, अनन्या पांडे, जयदीप अहलावत, अनूप सोनी, सतीश कौशिक, स्वानंद किरकिरे |
शैली | : | एक्शन-ड्रामा |
रेटिंग- ४