मुंबई, : श्रीमती नाथीबाई दामोदर ठाकरसी महिला विद्यापीठ, मुंबई द्वारा पंडित दीनदयाल उपाध्याय के 'एकात्म मानवदर्शन' के हीरक महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में 'एकात्म मानवदर्शन' नामक महत्वपूर्ण विषय पर एक राष्ट्रीय चर्चासत्र का सफलतापूर्वक आयोजन किया गया।
इस चर्चासत्र के उद्घाटन सत्र में लगभग ५०० शिक्षक, शिक्षणेतर कर्मचारी, छात्राएं और अन्य गणमान्य व्यक्तियों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही। विद्यापीठ के प्रा. डॉ. निलेश ठाकरे ने अपने स्वागत भाषण में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन कार्य और 'एकात्म मानवदर्शन' के दर्शन का गहन परिचय दिया। उन्होंने स्पष्ट किया कि "एकात्म मानवदर्शन" मानव के सर्वांगीण विकास, यानी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति पर ज़ोर देता है। उन्होंने मत व्यक्त किया कि शिक्षा केवल ज्ञानार्जन तक सीमित न रहकर, छात्रों को संवेदनशील, जागरूक और समाजोन्मुख बनाने का एक प्रभावी माध्यम है।
श्रीमती नाथीबाई दामोदर ठाकरसी महिला विद्यापीठ की कुलगुरु प्रा. डॉ. उज्ज्वला चक्रदेव ने अपने अध्यक्षीय भाषण से 'एकात्म मानवदर्शन' विषय पर राष्ट्रीय चर्चासत्र को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया। उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के 'एकात्म मानवदर्शन' के दर्शन को 'भारतीयता' की संकल्पना से जोड़ा।
कुलगुरु महोदया ने विशेष रूप से महिला शिक्षा और विद्यार्थी वर्ग के लिए इस दर्शन के महत्व को विस्तार से समझाया। उन्होंने छात्रों को प्रेरित करने वाले उदाहरण दिए कि वे दैनिक जीवन में 'एकात्म मानवदर्शन' को कैसे व्यवहार में ला सकते हैं।
प्रा. डॉ. चक्रदेव ने उल्लेख किया कि विद्यापीठ के रूप में एसएनडीटी महिलाओं को केवल डिग्री ही नहीं देता, बल्कि जागरूक, सक्षम और सामाजिक प्रतिबद्धता रखने वाले नागरिक भी बनाता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि 'एकात्म मानवदर्शन' छात्रों को समाज के विकास में अधिक प्रभावी ढंग से योगदान देने में मदद करता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मा. श्री. मंगल प्रभात लोढ़ा ने अपने मार्गदर्शन भाषण में पंडित दीनदयाल के विचारों की छात्रों और शिक्षा क्षेत्र के लिए प्रासंगिकता को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा के माध्यम से छात्रों में नैतिक मूल्य, सहानुभूति, समाज सेवा और उदारवाद जैसे गुणों का पोषण होना आवश्यक है। 'अंत्योदय', मानवीय मूल्यों और समग्र विकास पर आधारित यह दर्शन आज के सामाजिक संदर्भ में अधिक महत्वपूर्ण है।
इस अवसर पर श्री. प्रफुल्ल केतकर ने उदाहरणों के साथ 'एकात्म मानवदर्शन' के दर्शन की सामाजिक, शैक्षणिक और व्यक्तित्व विकास में उपयोगिता स्पष्ट की। उन्होंने प्रतिपादन किया कि इस दर्शन के आधार पर शिक्षक, मार्गदर्शक और छात्रों के बीच संवाद अधिक प्रभावी होता है, साथ ही शिक्षा प्रणाली समाजोन्मुख और सर्वसमावेशी बनती है।
दोपहर के सत्र में Ph.D. मार्गदर्शक, शिक्षक और राष्ट्रीय सेवा योजना (NSS) समन्वयक के लिए विशेष कार्यशाला आयोजित की गई थी। इस प्रशिक्षण कार्यशाला में प्रत्येक समूह में ५० शिक्षक, यानी कुल १०० शिक्षकों ने भाग लेकर मार्गदर्शन प्राप्त किया। श्री. आनंद मापुसकर, डॉ. वरदराज बापट और श्री. प्रमोद क्षीरसागर जैसे विशेषज्ञों ने प्रशिक्षक के रूप में इस कार्यशाला का संचालन किया।
चर्चगेट, मुंबई स्थित पाटकर हॉल में आयोजित इस सत्र का मुख्य उद्देश्य पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन की व्यावहारिक उपयोगिता छात्रों और शिक्षकों को समझाना था।